दो प्रयोग चल रहे हैं-एक तथाकथित देशी जिसमें कहा जा रहा है-अगर लिपि नष्ट होने से भाषा नष्ट हो जाती है तो लिपि हम अपनी बनाए रखें और अंग्रेजी शब्दों को उसमें डाल दें, क्योंकि वे हमारे प्रयोग में आ गए हैं और ‘ हमारे ' ही बन गए हैं! भाषा की रचना, उसके व्यक्तित्व का निर्माण, उसके भीतर अपनी बौद्धिक, वैचारिक और सर्जनात्मक अभिव्यंजना को रूपित करने का एक पूरा विज्ञान है, यहाँ वह बहस नहीं उठाना है।